कार्यरत माता पिता के बच्चों पर सामाजिकरण के प्रभावों का अध्ययन

Authors

  • रंजना सिंह शोध छात्रा, समाजशास्त्र विभाग, जवाहर लाल नेहरू पी. जी. कॉलेज, बाराबंकी सम्बद्ध राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत
  • सीताराम सिंह प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, जवाहर लाल नेहरू पी. जी. कॉलेज, बाराबंकी सम्बद्ध राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत

DOI:

https://doi.org/10.5281/zenodo.14651690

Keywords:

समाजीकरण,, प्राथमिक ,, द्वितीयक समाजीकरण, मूल्य, मानदंड, संस्कृति, उप संस्कृति, आत्म नियंत्रण, स्व का विकास,, कुरीतियां, सामाजिक तथ्य, सामूहिक प्रतिनिधीत्व, वयस्कता, वृद्धावस्था

Abstract

यह लेख लखनऊ के SGPGI ( कल्ली पश्चिम) के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों व संगठनों में कार्यरत माता पिता के बच्चों पर सामाजिकरण के प्रभावों के अध्ययन से संबंधित हैं। इसमें एक सामान्य घर व कामकाजी परिवार का अंतर का अध्ययन सम्मिलित हैं। साधारण परिवार में जब सिर्फ पिता कार्यरत हो और मां गृहणी हो तो उस परिवार में बच्चों पर सामाजिकरण का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता हैं। एक कार्यरत परिवार का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि एक मां को कामकाजी नहीं होना चाहिए। हम इसका समर्थन नहीं करते। कहने का तात्पर्य यह है कि एक मां से बेहतर बच्चे की चिंता और देखभाल कोई और नहीं कर सकता है।
डॉ अम्बेडकर महिलाओं की उन्नति के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि किसी भी समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है। दुनिया की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है इसलिए जब तक उनका समुचित विकास नहीं होता तब तक कोई भी देश चहुमुखी विकास नहीं कर सकता। (अनुच्छेद दृ) बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक वह बच्चों के विकास की दशा और दिशा तय करता है।

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Published

2024-09-30

How to Cite

सिंह र., & सिंह स. (2024). कार्यरत माता पिता के बच्चों पर सामाजिकरण के प्रभावों का अध्ययन. International Journal of Science and Social Science Research, 2(2), 326–328. https://doi.org/10.5281/zenodo.14651690
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