विद्यार्थियों को विचारवान बनाने में शिक्षक की भूमिका
DOI:
https://doi.org/10.5281/zenodo.13328078Keywords:
विचार, चिन्तन, मानसिक प्रक्रिया, बौद्धिक शक्ति, प्रकृति, अनुसंधान, परावर्तन, स्वसंवेदी आदिAbstract
शिक्षा त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक, शिक्षार्थी और विषय-वस्तु सम्मिलित हैं। वातावरण को भी इस प्रक्रिया का एक अंग माना जाने लगा है। ये सभी प्रक्रियाएँ समाज में घटित होती हैं तथा सामाजिक नियमों के आधार पर संचालित होती हैं। मनुष्य समाज में ही रहता है तथा विचार भी करता है, इसलिए मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है साथ ही विचारशील प्राणी भी। समाज में घटने वाली प्रत्येक घटना उसका ध्यान आकृष्ट करती है। मनुष्य प्रकृति के बिल्कुल नजदीक रहा है जिससे उसका परिवर्तित स्वरूप भी उसके मस्तिष्क को विचारशील बनाती रही है। इसलिए प्रकृति में घटने वाली प्रत्येक नयी घटना की व्याख्या करने के लिए उत्सुक हो जाता है। जगत की उत्पत्ति, जगत का प्रयोजन, जगत का विकास, ईश्वर का अस्तित्व और स्वरूप, ईश्वर और जगत का सम्बन्ध तथा ईश्वर और मनुष्य में सम्बन्ध आदि समस्याएँ व्यक्ति की सोच को प्रभावित करती हैं।
विचार क्या है? विचार मनुष्य के मस्तिष्क में क्यों आते हैं? और इन विचारों के आने से क्या होता है? ये सभी अति महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। इन प्रश्नों के सन्दर्भ में विचार करें तो यह बात सामने आती है कि विचार एक मानसिक प्रक्रिया है और विचार मस्तिष्क में आते हैं। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि ‘‘जब दृश्य जगत के सन्दर्भ में मनुष्य की बौद्धिक शक्ति कुछ सोचती है और उसका प्रकटीकरण करती है, उसे ही सम्भ्वतः विचार कहा जाता है।’’ प्रकृति विचार का केन्द्र बिन्दु है, प्रकृति परिवर्तनशील भी है। इसी परिवर्तनशीलता के कारण मनुष्य की जिज्ञासा बलवती होती रहती है और यही जिज्ञासा विचार को जन्म देती है। विचार से नवसृजन होता है तथा इसी नवसृजन से वर्तमान और भविष्य दोनों की दिशा तय होती है।
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Copyright (c) 2025 International Journal of Science and Social Science Research (ISSN: 2583-7877)

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