भारत में भक्ति आंदोलन: सामाजिक संरचना के परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण में इसकी भूमिका

Authors

  • अविनाश कुमार कौल असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, समाजशास्त्र विभाग, राजा श्रीकृष्णदत्त पी.जी. कॉलेज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

DOI:

https://doi.org/10.5281/zenodo.14210186

Keywords:

भक्ति आंदोलन, सामाजिक संरचना, जाति प्रथा, धार्मिक सहिष्णुता एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण

Abstract

भक्ति आंदोलन ने मध्यकालीन भारत की सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक परिवेश में गहरा प्रभाव डाला। यह आंदोलन उस समय उभरा जब सामाजिक असमानता, जाति प्रथा और धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर थीं। भक्ति संतों जैसे कबीर, तुलसीदास, मीराबाई और गुरु नानक ने धर्म के जटिल रीति-रिवाजों और जाति आधारित विभाजन के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समानता, सद्भाव और भाईचारे के मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन ने निम्न जातियों और महिलाओं को सामाजिक और धार्मिक रूप से सशक्त होने का अवसर प्रदान किया। इस आंदोलन ने जाति आधारित भेदभाव को चुनौती दी और सभी मनुष्यों की समानता पर जोर दिया। भक्ति संतों की वाणी में सामाजिक समरसता और आत्मीयता की झलक थी, जो जातीय और सांस्कृतिक बंधनों को शिथिल करती थी। इसके परिणामस्वरूप समाज में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता का प्रसार हुआ। भक्ति आंदोलन ने न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में व्यापक बदलाव किए। इसने भारतीय समाज को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया जो समानता और भक्ति पर आधारित था। यह शोध पत्र भक्ति आंदोलन के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों का विश्लेषण करते हुए, भारतीय समाज में इसके दीर्घकालिक योगदान को रेखांकित करता है।

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Published

2024-11-23

How to Cite

कौल अ. क. (2024). भारत में भक्ति आंदोलन: सामाजिक संरचना के परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण में इसकी भूमिका. International Journal of Science and Social Science Research, 2(3), 149–151. https://doi.org/10.5281/zenodo.14210186
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