शीर्षक-सूचनाधिकार के माध्यम से ग्रामीण विकास

Authors

  • ओमप्रकाश दुबे असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

DOI:

https://doi.org/10.5281/zenodo.15567669

Keywords:

सूचनाधिकार, ग्रामीण विकास, पंचायतीराज, पारदर्शिता, उत्तर प्रदेश, सूचना का स्वतः प्रकटीकरण

Abstract

लोकतंत्र में सरकार से पारदर्शिता और ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, किंतु स्वतंत्रता के बाद बढ़े भ्रष्टाचार ने सूचनाधिकार (Right to Information) की माँग को जन्म दिया। स्वीडन को सूचनाधिकार कानून की जननी माना जाता है। भारत में सूचनाधिकार अधिनियम 2005, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद 15 जून 2005 को लागू हुआ और 24 अक्टूबर 2005 से पूर्ण प्रभावी हुआ। यह अधिनियम लोकतंत्र व्यवस्था में पारदर्शिता लाने में सहायक सिद्ध हुआ है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी लगभग 70ः आबादी गाँवों में रहती है और ग्रामीण जनता का एक बड़ा हिस्सा अशिक्षित एवं कम जानकारी वाला है। 73वें संवैधानिक सुधार अधिनियम 1992 के उपरांत लागू हुई पंचायत व्यवस्था में सूचनाधिकार अधिनियम 2005 का विशेष महत्व है। सूचनाधिकार के माध्यम से ग्राम विकास के कार्यक्रमों में पारदर्शिता आई है, और ग्रामीण जनता गाँव के विकास से जुड़े कार्यों और विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे हैंडपंप, विद्युतीकरण, ग्रामीण आवास (इंदिरा आवास योजना), रोजगार गारंटी, पेंशन (वृद्धा/विधवा), राशन वितरण, छात्रवृत्ति आदि की जानकारी प्राप्त कर रही है। हालाँकि, विभिन्न विभागों द्वारा कार्य कराए जाने से जनता को जानकारी के लिए भटकना पड़ता है। इस समस्या के निवारण हेतु, अधिनियम की धारा 4(1)(ख) सार्वजनिक प्राधिकरणों से स्वेच्छा से (ेनव उवजन) सूचना प्रकाशित करने की अपेक्षा करती है, जिसमें पंचायत संस्थाओं के कर्तव्य, निर्णय प्रक्रिया, बजट, नियम और रखे जाने वाले अभिलेखों का विवरण शामिल है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने सूचना तक पहुँच को नागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया है। उत्तर प्रदेश में पंचायत स्तर पर जानकारी प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत सचिव (च्क्व्), उपनिदेशक पंचायत, जिला पंचायत अधिकारी और संयुक्त निदेशक जैसे लोक सूचना अधिकारी नामित हैं। यद्यपि कुछ सूचनाएँ (जैसे राष्ट्र की सुरक्षा या मंत्रिमंडलीय विचार-विमर्श से संबंधित) प्रकटन से मुक्त हैं, अधिकांश विकास संबंधी अभिलेख संवेदनशील नहीं होते और ग्राम पंचायत सचिव द्वारा रखे गए विभिन्न रजिस्टर (जैसे वार्षिक रिपोर्ट, कैश बुक, कार्यवाही रजिस्टर) सूचनाधिकार के माध्यम से देखे जा सकते हैं। सूचनाधिकार अधिनियम 2005 के आने के बाद ग्रामीण नागरिकों में शिक्षा और जागरूकता बढ़ने से इसका प्रयोग बढ़ा है, जिसने पंचायती प्रक्रिया में ईमानदारी लाई है और लोगों को अपने अधिकारों एवं सरकारी योजनाओं के लाभ के प्रति अधिक चेतन बनाया है।

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Published

2024-09-30

How to Cite

दुबे ओ. (2024). शीर्षक-सूचनाधिकार के माध्यम से ग्रामीण विकास. International Journal of Science and Social Science Research, 2(2), 342–347. https://doi.org/10.5281/zenodo.15567669
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